गैर-जिम्मेदाराना बयानबाज़ी और लोगों को भड़काने की साज़िश…? प्रताप सिंह बाजवा के बयान की सख्त निंदा क्यों जरूरी है…?

चंडीगढ़ (ब्यूरो ऑफिस)-  प्रताप सिंह बाजवा द्वारा बमों को लेकर दिया गया गैर-जिम्मेदाराना बयान पंजाब की आंतरिक शांति और राजनीतिक समझदारी पर एक निराशाजनक हमला है। ऐसे बयान न केवल जनता के बीच डर और गुस्सा पैदा करते हैं, बल्कि राज्य की राजनीतिक चेतना को भी खतरे में डालते हैं। पंजाब, जिसका इतिहास संघर्षों से भरा पड़ा है, हमेशा ऐसी बयानबाज़ियों का शिकार रहा है जो लोगों के दिलों में विभाजन पैदा करती हैं। इतिहास हमें सिखाता है कि शब्दों की धार कई बार हथियारों की चोट से भी ज़्यादा घातक हो सकती है, और बाजवा के शब्द कुछ इसी तरह प्रतीत होते हैं।
इस वक्त जब मुख्यमंत्री भगवंत मान की सरकार राज्य से नशा खत्म कर, पंजाब को विकास के रास्ते पर ले जाने की कोशिश में जुटी है, ऐसे में यह बयान राज्य और देश के दुश्मनों को खुली शह देने जैसा है। यह बात किसी भी संवेदनशील और जिम्मेदार नागरिक को आहत कर सकती है कि एक वरिष्ठ नेता ऐसे समय में, जब सरकार नशा विरोधी अभियान और शांति की स्थापना के लिए निरंतर प्रयास कर रही है, तो वह इस प्रकार के सनसनीखेज और डर फैलाने वाले बयान देकर जनता की चिंता को और बढ़ा रहा है।
ऐसे वक्त में, जब पंजाब आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर नई चुनौतियों से जूझ रहा है, इस तरह की बयानबाज़ी जो अस्थिरता को प्रोत्साहित करे, न केवल बेवक्त है, बल्कि किसी भी जिम्मेदारीभरे पद पर बैठे व्यक्ति के लिए असहनीय भी है। लोकतंत्र में, जहां प्रशासन जनता की भलाई, साझेदारी और भरोसे की नींव पर चलता है, वहां उच्च स्तर के नेताओं द्वारा भड़काऊ भाषा का उपयोग करना लगभग अपराध के बराबर है।
पंजाब जैसे ऐतिहासिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में, जहां हाल के दशकों में कई गंभीर अशांतियां देखी गई हैं, वहां ऐसे बेलगाम बयान कई बार मज़ाक से निकलकर गंभीर परिणाम पैदा कर सकते हैं। जनता में विश्वास बनाना, युवाओं को हिंसा से दूर रखना और समाज में शांति बनाए रखना जिन भूमिकाओं को नेताओं को निभाना चाहिए, उसके बिल्कुल उलट दिशा में बाजवा के शब्द चलते दिखते हैं।
यह बयान न केवल राजनीतिक अपरिपक्वता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि आधुनिक राजनीति में कई बार लोकप्रियता या मीडिया की सुर्खियां बटोरने के लिए सच्चाई, संवेदनशीलता और ज़िम्मेदारी को तवज्जो नहीं दी जाती। ऐसी राजनीति जो डर पैदा कर अपना वजूद बनाए, वह अंततः खुद के लिए ही विनाश लाती है।
मीडिया, नागरिक समाज और निर्वाचित प्रतिनिधियों को मिलकर इस बयान की सख़्त निंदा करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पंजाब की ओर उठती निगाहों को हम इतिहास की दुहाई नहीं, संयम और स्थिरता की मिसाल दे सकें। पंजाब की जनता अब राजनीतिक समझ रखती है, और उन्हें ऐसे नेता चाहिए जो सच्चाई, ज़िम्मेदारी और आत्मविश्वास से खड़े हों – न कि वो जिनकी भाषा आग से खेलने लगे।
यह संपादकीय एक स्पष्ट और तीखा प्रतिकर्म है – राजनीति को जनता की सेवा के लिए चलाया जाए, न कि गैर-जिम्मेदार शब्दों और भड़काऊ बयानों से उसे छीनने की कोशिश की जाए।

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