Wednesday, August 20, 2025
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केंद्र सरकार का नंगल बांध सुरक्षा में दखल: पंजाब के स्वाभिमान को चुनौती

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न्यूज डेस्क (ब्यूरो चीफ)- नंगल बांध को केंद्रीय सुरक्षा बलों (CISF) के हवाले करने का फैसला पंजाब-केंद्र तनाव को एक नया मोड़ देने वाला कदम है। यह कार्रवाई सिर्फ एक प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि पंजाब के संवैधानिक अधिकारों, जल संपदा पर मालिकाना हक और प्रांतीय गौरव से जुड़ी एक संवेदनशील छेड़छाड़ है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस फैसले को “उपेक्षापूर्ण और राजनीतिक मंशा वाला” बताते हुए सख्त विरोध किया है, जो पंजाब के ऐतिहासिक अधिकारों की रक्षा का प्रतीक है।

नंगल बांध पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के लिए पानी के बंटवारे का केंद्र है। लेकिन, SYL नहर और भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) से जुड़े विवादों की वजह से यह इलाका राजनीतिक उठापटक का केंद्र बना रहता है। हाल ही में, पंजाब सरकार द्वारा हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने से इनकार करने के बाद, केंद्र का CISF को तैनात करने का फैसला एक “दबाव की रणनीति” के रूप में देखा जा रहा है।

बांध पंजाब की धरती पर स्थित है और इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रांतीय पुलिस की है। केंद्र का बिना सलाह-मशविरे CISF तैनात करना प्रांतीय स्वायत्तता को कमजोर करने वाला कदम है। CISF तैनाती पर सालाना 8.58 करोड़ रुपये का खर्च पंजाब के खजाने पर बोझ बनेगा, जो पहले से ही वित्तीय संकट का सामना कर रहा है। पंजाब पुलिस ने अतीत में बांध सहित संवेदनशील ढांचों को सुरक्षित रखा है। CISF की तैनाती इस संस्था की योग्यता पर सवाल उठाती है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम पंजाब के जल संसाधनों पर केंद्र का सीधा नियंत्रण स्थापित करने की लंबी रणनीति का हिस्सा है।

भगवंत मान ने इस मामले को सीधे प्रधानमंत्री मोदी के सामने उठाने की घोषणा करके स्पष्ट कर दिया है कि पंजाब अपने संवैधानिक अधिकारों से समझौता नहीं करेगा। उनका कहना है कि “अगर पंजाब पुलिस सीमाओं की रक्षा कर सकती है, तो बांध जैसे आंतरिक ढांचे को क्यों नहीं संभाल सकती?” इसी तरह, उन्होंने BBMB या प्रांतीय खजाने से CISF के खर्च के लिए एक रुपया भी देने से इनकार किया है।

यह घटना सिर्फ एक बांध की सुरक्षा तक सीमित नहीं है। यह पंजाब के संसाधनों पर केंद्रीकरण की रणनीति का हिस्सा हो सकती है। अगर आज नंगल बांध को CISF के हवाले किया जाता है, तो कल SYL या अन्य जल ढांचे भी इसी राह पर चल पड़ेंगे। इसलिए, मान की लड़ाई सिर्फ एक प्रशासनिक मुद्दे से नहीं, बल्कि पंजाब की आने वाली पीढ़ियों के अधिकारों से जुड़ी हुई है।

इस संघर्ष में पंजाब की जनता और सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होने की जरूरत है। केंद्र की यह कार्रवाई प्रांत के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाती है और संघीय ढांचे में असंतुलन पैदा करती है। अगर आज चुप रहेंगे, तो कल पंजाब के और अधिकार भी छीन लिए जाएंगे। भगवंत मान की यह लड़ाई सिर्फ एक मुख्यमंत्री की नहीं, बल्कि हर उस पंजाबी की है जो अपनी आवाज को बुलंद करना चाहता है।

“पंजाब सिर्फ एक भौगोलिक इकाई नहीं, यह हमारी पहचान, हमारा गौरव और हमारे भविष्य की गारंटी है।”

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