पंजाब से कीटनाशक रहित बासमती निर्यात को तेज करने के लिए रणनीतिक हस्तक्षेप की ज़रूरत

 

चंडीगढ़, 5 जुलाईः

पंजाब राज्य से कीटनाशकोें के अवशेष रहित बासमती निर्यात को तेज करने सम्बन्धी पंजाब राज्य किसान और कृषि श्रमिक आयोग के चेयरमैन प्रोफ़ैसर डा. सुखपाल सिंह के नेतृत्व अधीन विचार-विमर्श किया गया जिससे फ़सली राज्य में फ़सल विविधीकरण लाया जा सके और कम से कम 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र धान से बाहर निकाला जा सके।इस विचार चर्चा में डा. सन्दीपराव पाटिल, उत्तरी भारत ज़ोनल मैनेजर, डा. मालविन्दर सिंह मल्ली, ग्लोबल ट्रेनर बाईर फ़सल विज्ञान और डा. आर. एस. बैंस, श्री मानवप्रीत सिंह आर. ओ., श्री गगनदीप आर. ए. शामिल हुए।

यह विचार-विमर्श रणनीतिक हस्तक्षेप तैयार करने और राज्य से यूरोपियन यूनियन और संयुक्त राज अमरीका को बासमती के निर्यात में शामिल रुकावटों की पहचान करने के लिए किया गया जिसमें यह सामने आया कि एम. आर. एल. से अधिक कीटनाशकों का अवशेष इन देशों को निर्यात में रुकावट डालने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डा. राव ने आयोग के चेयरमैन के संज्ञान में यह भी लाया कि कृषि और किसान कल्याण विभाग ने 11 कीटनाशकों पर पाबंदी लगाई है जो 1 अगस्त से 30 सितम्बर तक लागू की जायेगी, जोकि एक स्वागत योग्य कदम है। हालाँकि, विभाग को कुछ कीटनाशकों के फ़ैसले पर फिर से विचार करना चाहिए जो विश्व स्तर पर धान की फ़सल पर इस्तेमाल किये जा रहे हैं और उन देशों में अवशेष की कोई समस्या नहीं है। धान के व्यावहारिक विकल्प के तौर पर खरीफ मक्का की फ़सल एक महत्वपूर्ण फ़सल है जो पानी की खपत धान की फ़सल की अपेक्षा बहुत कम करती है। चेयरमैन ने एक खरीफ मक्का हाइब्रिड विकसित करने पर ज़ोर दिया जिस में कम से कम 35 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन के साथ धान के तुलनात्मक आधार पर आमदन प्राप्त की जा सके। डा. राव ने बताया कि बाईर पेट्रोल के साथ इथेनॉल को मिलाने की इजाज़त के मद्देनज़र बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए इस पर व्यापक तौर पर काम कर रहा है और जल्दी ही हाइब्रिड किस्मों को पंजाब राज्य के किसानों द्वारा बड़े स्तर पर अपनाने की पेशकश की जा सकती है जो धान की फ़सल से काफ़ी क्षेत्र को छुड़वा/मुक्त करवा/ सकते हैं। डा. रणजोध सिंह बैंस एडमिन अफ़सर- कम- सचिव, पंजाब राज्य किसान और कृषि श्रमिक आयोग ने खुलासा किया कि धान की बुवाई से और कम पानी की खपत वाले क्षेत्रों में बदलना हमारे कुदरती स्रोतों को कायम रखने के साथ-साथ किसानों के लाभ को कम से कम धान की फ़सल से होने वाले लाभ के बराबर सुरक्षित रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
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