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चंडीगढ़ (ब्यूरो चीफ) – पंजाब वर्षों से जल संकट से जूझता रहा है, और सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर का मुद्दा इसकी सबसे बड़ी परिणतियों में से एक है। यह केवल एक नहर निर्माण का विवाद नहीं, बल्कि पंजाब की पहचान, कृषि भविष्य और जल अधिकारों की रक्षा से जुड़ा प्रश्न है। इस ऐतिहासिक मसले पर कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जो सशक्त और स्पष्ट स्टैंड SYL और समग्र जल वितरण पर लिया है, वह एक निर्णायक बदलाव का संकेत देता है।
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने न केवल सुप्रीम कोर्ट में पंजाब की ओर से मजबूती से पक्ष रखा, बल्कि बीते कुछ वर्षों में केंद्र सरकार के साथ विभिन्न बैठकों और मंचों पर भी स्पष्ट कर दिया कि पंजाब के पास अब अतिरिक्त जल नहीं है जिसे किसी अन्य राज्य को दिया जा सके। उन्होंने तथ्यात्मक आंकड़ों और वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर यह बताया कि पंजाब की नदियों में जल प्रवाह लगातार घट रहा है और राज्य की 78% भूजल क्षमता पहले ही ‘क्रिटिकल’ या ‘ओवरएक्सप्लॉइटेड’ श्रेणी में है।
बीबीएमबी (Bhakra Beas Management Board) के संदर्भ में भी भगवंत मान का रुख बेहद सख्त और स्पष्ट रहा। केंद्र द्वारा बीबीएमबी में बाहरी राज्यों के अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर पंजाब सरकार ने विरोध दर्ज कराया, और मुख्यमंत्री ने यह साफ कहा कि पंजाब के जल संसाधनों पर बाहरी नियंत्रण स्वीकार्य नहीं है। उनका यह रुख केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि संघीय ढांचे की गरिमा की रक्षा का भी प्रतीक था।
मुख्यमंत्री ने केंद्र के सामने यह भी प्रस्ताव रखा कि जल संकट का समाधान केवल जल बंटवारे से नहीं, बल्कि वाटर रिचार्जिंग, जल पुनर्चक्रण, और इंटीग्रेटेड वाटर मैनेजमेंट जैसे वैज्ञानिक उपायों से किया जा सकता है। उन्होंने अन्य राज्यों को सुझाव दिया कि वे पंजाब पर निर्भर रहने के बजाय अपने-अपने क्षेत्रों में जल स्रोतों को मजबूत करें और रेनवाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य बनाएं।
एक ओर जहां सुप्रीम कोर्ट ने SYL निर्माण को लेकर केंद्र सरकार को कार्रवाई करने को कहा, वहीं मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पंजाब विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास करवा SYL के खिलाफ जनमत को वैधानिक स्वर दिया। उन्होंने साफ किया कि SYL पंजाब के जनादेश और भूगोल दोनों के खिलाफ है।
भगवंत मान का यह रुख बताता है कि वे केवल विरोध की राजनीति नहीं कर रहे, बल्कि दृष्टिकोण और विकल्पों के साथ एक वैचारिक लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने यह दिखा दिया कि पंजाब अब ‘पानी के नाम पर सौदेबाज़ी’ नहीं, बल्कि नीति, संविधान और विज्ञान के आधार पर अपना हक़ मांगेगा। जहां कुछ राजनेता SYL को केवल चुनावी मुद्दा बनाकर छोड़ देते हैं, वहीं भगवंत मान ने इसे सत्ता में रहते हुए निर्णायक तरीके से उठाया और ठोस कदम उठाए। चाहे वह सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे की भाषा हो या केंद्र के समक्ष प्रस्तुत की गई रिपोर्टें, मुख्यमंत्री का हर कदम पंजाब के हितों की रक्षा को समर्पित रहा है।
यह अब निर्विवाद रूप से स्पष्ट हो गया है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान न सिर्फ पंजाब के ‘जल योद्धा’ हैं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक नीतियों के एक दुर्लभ संगम भी हैं। पंजाब के पानी की रक्षा अब एक व्यक्ति की नहीं, पूरे राज्य की अस्मिता की लड़ाई बन चुकी है, जिसका नेतृत्व पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान दृढ़ता से कर रहे हैं।