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Women Reservation Bill Updates: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने सोमवार की शाम 33 फीसदी महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दी है। यह बिल 27 सालों से अटका है। INDIA गठबंधन में अहम पार्टी कांग्रेस भी इसकी जोर-शोर से मांग कर रही थी। आखिरी बार 2010 में यूपीए के शासन में ही महिला आरक्षण बिल को संसद के पटल पर रखा गया था, लेकिन लोकसभा से पास नहीं हो पाया था।
जानिए बिल से संबंधित प्रमुख घटनाक्रम और चुनौतियां
पहली बार कब पेश हुआ: महिला आरक्षण विधेयक पहली बार 1996 में पेश किया गया था। उसके बाद 1998 और 1999 में भी पेश किया गया था। आखिरी बार 2010 में यह राज्यसभा से पास हुआ था। तब से मामला लंबित था।
वर्तमान प्रतिनिधित्व: लोकसभा की कुल सदस्य संख्या में महिला सांसदों की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत से कम है, और कई राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से कम है।
राजनीतिक समर्थन: भाजपा और कांग्रेस ने लगातार विधेयक का समर्थन किया है। हालांकि जातिगत राजनीति करने वाले क्षेत्रीय दलों ने इसका विरोध किया था। महिलाओं के कोटे के भीतर उप-कोटा की मांग इस बिल की बड़ी बाधा बन रही है।
हालिया दबाव: बीजेडी और बीएसपी समेत कई पार्टियों ने हाल ही में बिल को पुनर्जीवित करने की मांग की है और कांग्रेस ने इसका समर्थन करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है।
“Only the Modi government had the moral courage to fulfil the demand for women’s reservation. Which was proved by the approval of the cabinet. Congratulations PM Narendra Modi and congratulations to the PM Modi government,” tweets Union Minister Prahlad Singh Patel pic.twitter.com/y4yqSQturn
— ANI (@ANI) September 18, 2023
2008 विधेयक: 2008 के विधेयक में लोकसभा और प्रत्येक राज्य की विधानसभाओं में सभी सीटों में से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव था। इसने एससी, एसटी और एंग्लो-इंडियन के लिए उप-आरक्षण का भी सुझाव दिया।
आरक्षण अवधि: आरक्षण 15 वर्षों के लिए लागू होना था, प्रत्येक आम चुनाव के बाद सीटों को परिसीमन किया जाना था।
जब स्थाई समिति बनी: एक संयुक्त संसदीय समिति ने महिला आरक्षण बिल में संशोधन की सिफारिशें की थीं, जिनमें से कुछ को 2008 के विधेयक में शामिल किया गया था। 2008 के विधेयक को कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया था, लेकिन आम सहमति नहीं बन पाई थी।
संवैधानिक संशोधन: राज्य सभा में आरक्षण लागू करने के किसी भी प्रयास के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी।
व्यापक समर्थन की आवश्यकता: विधेयक पर संसद के प्रत्येक सदन में दो-तिहाई समर्थन की आवश्यकता है।
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