नई दिल्ली (नवदीप)- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 जनवरी 2025 को दिल्ली में दियेअपने भाषण में दिल्ली सरकार की आलोचना करते हुए उसे शहर पर ‘आपदा’ करार दिया। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने 43 मिनट के भाषण में 39 मिनट दिल्ली के लोगों को गालियां दीं।
प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या मौजूदा सरकार बड़े मुद्दों पर ठोस और दूरदर्शी दिशा देने में सक्षम है? यह भाषण न केवल प्रभावहीन रहा, बल्कि इसमें वह गहराई और नीतिगत स्पष्टता भी नहीं दिखी, जो देश के मौजूदा आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक हालात के लिए अपेक्षित थी।
प्रधानमंत्री के भाषण में विकास, रोजगार, और महंगाई जैसे ज्वलंत मुद्दों का जिक्र जरूर हुआ, लेकिन यह केवल सामान्य वादों और अतीत की उपलब्धियों का बखान तक ही सीमित रहा। जब देश अर्थव्यवस्था में मंदी, बढ़ती बेरोजगारी, और वैश्विक बाजार में चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब सरकार की ठोस योजनाओं और भविष्य की रूपरेखा की आवश्यकता थी। इसके बजाय, भाषण में अतीत की सफलताओं और योजनाओं के दोहराव पर जोर दिया गया।
आम जनता को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री कुछ ऐसे ठोस कदमों की घोषणा करेंगे, जो तुरंत प्रभावी हों। उदाहरण के लिए, बेरोजगारी के सवाल पर ठोस नीतियों और योजनाओं की जरूरत थी, लेकिन यह मुद्दा केवल सतही तौर पर छुआ गया। इसी तरह, महंगाई के बढ़ते दबाव के बीच राहत के उपायों की भी कोई ठोस घोषणा नहीं की गई। प्रधानमंत्री का भाषण जनता के बड़े वर्ग में निराशा का कारण बना। सोशल मीडिया पर अनेक लोगों ने इसे “पुराने वादों की पुनरावृत्ति” करार दिया। विश्लेषकों का मानना है कि यह भाषण सरकार के जमीनी हकीकत से कटे होने की छवि को और मजबूत करता है।
आज जब देश कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहा है, तो नेतृत्व को न केवल दूरदर्शी होना चाहिए, बल्कि जनता की आकांक्षाओं और ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील भी। भाषण महज प्रेरणादायक शब्दों और वादों से नहीं, बल्कि ठोस योजनाओं और उनके क्रियान्वयन की स्पष्टता से प्रभावी होते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी को यह समझने की आवश्यकता है कि अब वह दौर नहीं रहा, जब केवल बड़े वादे और भावनात्मक अपील जनता को संतुष्ट कर सकती हैं। जनता ठोस नतीजों की अपेक्षा करती है, और अगर ये अपेक्षाएं पूरी नहीं हुईं, तो इसका राजनीतिक असर भी लंबे समय तक देखा जा सकता है।
दिल्ली में दिया गया प्रधानमंत्री मोदी का भाषण एक यादगार अवसर हो सकता था, लेकिन यह अवसर प्रभावहीन भाषण के कारण चूक गया। इस भाषण ने न केवल सरकार की आलोचनाओं को बढ़ावा दिया है, बल्कि यह भी साबित किया है कि अब समय महज शब्दों का नहीं, बल्कि काम का है। यदि सरकार जल्द ही ठोस और दूरदर्शी नीतियों पर अमल नहीं करती, तो यह उसकी साख और जनता के भरोसे को कमजोर कर सकता है।