आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद दो कैदियों के चुनाव लड़ने और जीतने का मामला इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। इसी मामले में एक वरिष्ठ वकील ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि स्थिति बहुत अजीब है जहां कैदी वोट नहीं दे सकते, लेकिन चुनाव लड़ सकते हैं।
हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में जेल के कैदियों के चुनाव लड़ने और जीतने के बाद कानून और संविधान के बीच जंग शुरू हो गई है। जहां एक ओर कानून के पास कैदी को शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने से रोकने का अधिकार है, वहीं दूसरी ओर संवैधानिक अधिकार उसे शपथ लेने की अनुमति दे रहा है। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में जेल में बंद सिख उपदेशक अमृतपाल सिंह ने खडूर साहिब सीट से और शेख अब्दुल रशीद ने बारामूला सीट से जीत हासिल की है।
इसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष वरिष्ठ वकील विकास सिंह का कहना है कि आपराधिक आरोपों का सामना करने वाले विधायकों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह एक अजीब स्थिति है कि जेल में बंद लोग वोट नहीं दे सकते, लेकिन चुनाव लड़ सकते हैं और जीत सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान निर्माताओं ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसे लोग भी संसद के लिए चुने जा सकते हैं। इन आरोपों को निर्धारित करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है। जिसके तहत उम्मीदवार चुनाव लड़ने से अयोग्य हो जायेंगे। उन्होंने कहा कि संसदीय सीट 60 दिन से ज्यादा खाली नहीं रह सकती। संसद को इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए और ऐसे लोगों को निर्वाचित नहीं होने देना चाहिए। क्योंकि जब तक वे हिरासत में रहेंगे उनके घटकों का प्रतिनिधित्व नहीं होगा।
वहीं, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत पद्मनाभन ने कहा कि संविधान की यहीं तो खूबसूरती है कि यह उन लोगों की रक्षा करता है जो इसका पालन भी नहीं करते हैं। इसके साथ ही प्रशांत ने कहा कि संसद में ऐसे मामलों से बचने का रास्ता त्तकाल सुनवाई है। जिन आरोपों के तहत उम्मीदवार जेल में हैं, उन्हें बरी किया जाना चाहिए अन्यथा उन्हें दोषी घोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने धाराओं का जिक्र करते हुए कहा कि आरपी अधिनियम, 1951 की धारा 8 (3) के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है या 2 साल या उससे अधिक के कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो उसे चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।