चंडीगढ़: (4 जून ) – जब राजनीति में नैतिकता का संकट हो, तो पुराने पाप भुला दिए जाते हैं और नए सवाल उठाकर ध्यान भटकाया जाता है। कांग्रेस और प्रताप सिंह बाजवा द्वारा आम आदमी पार्टी और मुख्यमंत्री कार्यालय पर हालिया हमलों को देखकर कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है।
नील गर्ग का ट्वीट आज उस चुप्पी को तोड़ता है, जो कांग्रेस के शासनकाल में दिल्ली दरबार की परिक्रमा करते मुख्यमंत्रियों पर कभी नहीं उठी। उन्होंने बेहद सटीक सवाल किया—जब प्रशांत किशोर, जो एक राजनीतिक रणनीतिकार मात्र थे, को पंजाब में ‘अघोषित मुख्यमंत्री’ बना दिया गया, तब क्यों कोई जवाबदेही नहीं मांगी गई? क्या लोकतंत्र उस समय छुट्टी पर था?
और अगर आज मुख्यमंत्री कार्यालय में किसी अधिकारी की भूमिका पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं, तो यह भी पूछा जाना चाहिए कि कांग्रेस के कार्यकाल में क्या सब कुछ पारदर्शी था?
नील गर्ग का इशारा अरूसा आलम पर भी था—एक पाकिस्तानी नागरिक, जिसे पंजाब के मुख्यमंत्री कार्यालय तक अनधिकृत पहुंच प्राप्त थी। वो तकरीबन हर निर्णय की पूर्व-स्वीकृति देती थीं, फाइलें बिना उनकी रज़ामंदी के आगे नहीं बढ़ती थीं। तब विपक्ष चुप क्यों था?
वास्तव में, आज का विरोध केवल इसलिए है क्योंकि आम आदमी पार्टी ‘कांग्रेस नहीं है’। वह दिल्ली-मॉडल की तरह एक जवाबदेह और पारदर्शी शासन की कोशिश कर रही है। यह विरोध इस डर का परिणाम है कि यदि पंजाब में आप सरकार सफल हो गई, तो कांग्रेस की सियासी ज़मीन और अधिक खिसक जाएगी।
जब चरणजीत चन्नी को केवल तीन महीनों के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब वे सप्ताह में दो से तीन बार दिल्ली की दौड़ लगाते थे। कोई नहीं पूछता था कि क्या पंजाब का मुख्यमंत्री इतना पराश्रित क्यों है? आज जब अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान मिलकर एक स्पष्ट विज़न के साथ सरकार चला रहे हैं, तो पेट में मिर्च क्यों लग रही है?
सवाल यह नहीं कि केंद्र और राज्य में सामंजस्य क्यों है—सवाल यह है कि कांग्रेस ने इतने वर्षों तक पंजाब को अपने दिल्ली दरबार के इशारों पर क्यों चलाया?
नील गर्ग का यह कहना बिल्कुल सही है—”हम सिस्टम बना रहे हैं, चापलूसी नहीं।”
कांग्रेस और प्रताप सिंह बाजवा को यह बात समझनी चाहिए कि अब पंजाब की जनता जागरूक हो चुकी है। उसे यह बखूबी पता है कि कौन पारदर्शिता के साथ काम कर रहा है और कौन अपनी विफलताओं पर पर्दा डालने के लिए झूठी अफवाहों का सहारा ले रहा है।
कांग्रेस को आत्ममंथन करने की आवश्यकता है। विरोध करने से पहले खुद के कार्यकाल की तस्वीर देखनी चाहिए। राजनीतिक हमलों की जगह अगर विपक्ष रचनात्मक आलोचना करे, तो लोकतंत्र को मज़बूती मिलेगी। वरना जनता समझती है कि असल मिर्च कहां लगी है।
