चंडीगढ़ (ब्यूरो चीफ) – पंजाब में भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान अब केवल नारेबाज़ी तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि यह ज़मीनी सच्चाई के रूप में उभर रहा है। सरकार द्वारा फाज़िल्का के एसएसपी को निलंबित करना, अपने ही विधायक की गिरफ्तारी, और पूर्व में एक मंत्री और दूसरे विधायक के खिलाफ की गई कार्रवाई सीधे इस बात की ओर इशारा करती है कि सरकार की ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ नीति केवल कागज़ी बयान नहीं, बल्कि व्यवहारिक रूप में लागू हो रही है।
इस तरह की कार्रवाई सामान्यतः विरले ही देखने को मिलती है, जब कोई सरकार अपने घर के भीतर झांक कर पवित्रता की शुरुआत करती है। जहाँ अधिकांश सरकारें केवल विपक्षियों पर ही निशाना साधती हैं, वहीं पंजाब सरकार ने अपने विधायकों और मंत्रियों पर भी कार्रवाई कर एक नया संकेत दिया है कि क़ानून और नैतिकता के मानदंड सबके लिए समान हैं। इस रूप में यह लड़ाई सिर्फ़ राजनीतिक या चुनावी लाभ की बात नहीं रह जाती, बल्कि एक नई प्रशासनिक संस्कृति की नींव रखती है।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध यह लहर पंजाब के नागरिकों में एक नया विश्वास जगा रही है कि अब केवल छोटे अधिकारी या नौकरशाह ही नहीं, बल्कि उच्च पदों पर बैठे लोग भी जवाबदेह ठहराए जा रहे हैं। यह पहल निश्चित रूप से लंबे समय से अपेक्षित एक स्वच्छ शासन की मांग की दिशा में उठाया गया कदम है। जहाँ विरोधी इसे राजनीतिक चाल या अंदरूनी गुटबाज़ी से जोड़ रहे हैं, वहाँ यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी सरकार द्वारा अपने ही घर को सामने रखकर कार्रवाई करना राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि नैतिक दृढ़ता और लोकतंत्र में पारदर्शिता को मज़बूत करने वाला क़दम होता है।
यह संघर्ष एक ऐसी शुरुआत है जिसमें राजनीतिक लाभ के तत्व धीरे-धीरे गौण हो जाते हैं और नागरिक भलाई, ईमानदारी और भरोसे की जीत होती है। यदि यह नीति निरंतर और निष्पक्ष रूप से आगे बढ़ी, तो यह निश्चित रूप से पंजाब की राजनीति और प्रशासन में एक नए युग की शुरुआत बन सकती है, जहाँ सेवा की मानसिकता, जवाबदेही और नैतिकता के मूल सिद्धांत एक नई राह गढ़ेंगे।