किसान आंदोलन से कैसे टूटी पंजाब की आर्थिकता की कमर, एक्शन नहीं लेते तो ओर बद्तर होते हालात

चंडीगढ़ (ऑफिस ब्यूरो)- एक लंबे आंदोलन के बाद जिस तरह से कुछ पहले शंभू और खनौरी मोर्चों पर पंजाब पुलिस ने कार्रवाई की, उसे लेकर राज्य के कुछ किसान संगठन सरकार पर सवाल खड़े कर रहे हैं लेकिन पंजाब के अन्दर एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है, जो सरकार और पुलिस की इस कार्रवाई का खुलकर समर्थन करता हुआ दिख रहा है।

सरकार के इस फैसले के साथ लाखों लोग इसलिए भी खड़े हुए हैं क्योंकि लगातार धरने-प्रदर्शन, सड़कें जाम होने और मोर्चे लगने से पंजाब का आर्थिक रूप से बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। पंजाब की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचे पर किसान आंदोलन के गंभीर प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस आंदोलन ने न केवल राज्य की विकास प्रक्रिया को प्रभावित किया है, बल्कि आम लोगों की दैनिक जिंदगी में भी बड़े पैमाने पर उलझनें पैदा की हैं। जमीन प्राप्ति में देरी, परियोजनाओं का रुकना, निवेश में गिरावट, और परिवहन क्षेत्र को पहुंचे नुकसान ने पंजाब की अर्थव्यवस्था को गंभीर झटका दिया है। 

पंजाब में बड़ी परियोजनाओं की प्रगति रुक गई है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने तीन बड़ी परियोजनाओं को रद्द कर दिया है, जिसके कारण 3 हजार करोड़ रुपये से अधिक के निवेश को नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा, बुनियादी ढांचे के विकास की कई परियोजनाएं अधूरी रह गई हैं। यह स्थिति निवेशकों के लिए निराशाजनक बन गई है, जिससे पंजाब में निवेश दर में भारी गिरावट आई है। पिछले कुछ समय के दौरान पंजाब में निवेश दर 85 प्रतिशत तक घट गई है, जो राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए चिंताजनक है। 

व्यापारिक क्षेत्र में भी इस आंदोलन के कारण बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। पंजाब से 1 लाख से अधिक व्यापारिक इकाइयां बाहर चली गई हैं, जिससे 3 लाख करोड़ रुपये का निवेश राज्य से बाहर चला गया है। किसानों के प्रदर्शनों के कारण व्यापारिक क्षेत्र को 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। अकेले लुधियाना शहर में ही व्यापारियों को 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। 17 मार्च को पंजाब बंद के दौरान लुधियाना में करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ था। 

परिवहन क्षेत्र को भी इस आंदोलन के कारण भारी नुकसान झेलना पड़ा है। सड़क और रेल परिवहन बंद होने के कारण 1500 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। ट्रांसपोर्टरों को रोजाना 80 से 100 किलोमीटर तक अधिक सफर करना पड़ा है, जिससे किराया बढ़ा है और औद्योगिक सामान के दामों में वृद्धि हुई है। इससे बहुत सारे ग्राहक पंजाब से दूसरे राज्यों की ओर रुख कर गए हैं, जिससे व्यापारियों के ऑर्डर कम हो गए हैं और आर्थिक चुनौतियां बढ़ गई हैं। 

कृषि क्षेत्र को भी इस आंदोलन के कारण बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है। सड़कें बंद होने के कारण सब्जियों और डेयरी उत्पादों की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हुई है, जिससे कृषि उत्पादों की बिक्री प्रभावित हुई है। इसके अलावा, रेल रोको आंदोलन के कारण पंजाब में कोयले की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हुई है, जिससे बिजली की व्यापक कमी हुई है। अकेले लुधियाना शहर में ही बिजली आपूर्ति ठप होने के कारण 16,730 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। 

इस आंदोलन के कारण पंजाब के लोगों पर कर्ज का बोझ भी बढ़ रहा है। पंजाब का सरकारी कर्ज 3.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जो राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है। निजी क्षेत्र में नए रोजगार के अवसर भी उम्मीदों के अनुरूप नहीं बढ़े हैं। पंजाब में बेरोजगारी दर 19 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जो राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है। 

इस प्रकार, किसान आंदोलन ने पंजाब की अर्थव्यवस्था, सामाजिक ढांचे, और लोगों की दैनिक जिंदगी पर गहरा प्रभाव डाला है। इस स्थिति को सुधारने के लिए सरकार और किसान नेताओं के बीच गंभीर विचार-विमर्श की आवश्यकता है, ताकि राज्य की अर्थव्यवस्था को फिर से ट्रैक पर लाया जा सके और लोगों की जिंदगी में स्थिरता आ सके।

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