“बुरी फंसी कांग्रेस” — गलत बयानबाज़ी की ग़लत लड़ाई लड़नी पड़ रही है कांग्रेस को।

 

अमन अरोड़ा के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन ने पंजाब की राजनीतिक ज़मीन को झकझोर कर रख दिया है। कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा के भड़काऊ और बेबुनियाद बयानों के संदर्भ में आम आदमी पार्टी की उच्च स्तरीय प्रतिक्रिया न केवल एक राजनीतिक करारा जवाब थी, बल्कि यह पंजाब में विघ्न पैदा करने वाली ताक़तों के खिलाफ एक जनजागृति की लहर भी बन गई।

यह प्रदर्शन पंजाबी राजनीति के नक्शे पर एक नई सजगता की शुरुआत के रूप में उभरा है, जहाँ दावों और बयानों से ऊपर उठकर जवाबदेही की मांग की गई है। प्रताप सिंह बाजवा द्वारा पंजाब में ग्रेनेड की मौजूदगी को लेकर दिया गया बयान, जो किसी भी स्थापित या प्रमाणित स्रोत पर आधारित नहीं था, एक गैर-जिम्मेदाराना बयान था जो राजनीतिक मंशा पर सवाल खड़े करता है।

अमन अरोड़ा द्वारा उनके लिए रखे गए दो स्पष्ट विकल्प—या तो जानकारी पुलिस के साथ साझा करें या माफ़ी माँगें—इस बात की पुष्टि है कि अब पंजाब की राजनीति में खुले आरोपों के लिए कोई ढील नहीं दी जाएगी। यह एलान सिर्फ़ एक नेता की बात नहीं थी, यह एक पार्टी की प्रतिबद्धता थी जो सूबे की शांति को आँखों के तारे की तरह संजोए रखना चाहती है।

आम आदमी पार्टी के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि पंजाब में आतंक का हवाला देना कोई साधारण राजनीतिक चाल नहीं, बल्कि एक घिनौनी कोशिश है जो सूबे की तरक्की और स्थिरता को हिला सकती है। जब किसी नेता के पास खतरे के बारे में कोई गंभीर जानकारी होती है, तो उसकी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह उसे खुफिया एजेंसियों या पुलिस के साथ साझा करे, ना कि मीडिया के ज़रिए एक अज्ञात डर और गुमराही फैलाए। यह रवैया केवल एक राजनीतिक दिलासा नहीं था, यह राज्य की खुफिया सेवाओं और लोगों के भरोसे पर हमला था।

इस पूरे मामले में सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि जब कोई नेता ऐसे दावे करता है, वह केवल अपनी विरोधी पार्टी को ही नहीं, बल्कि राज्य की आम जनता के मन में अशांति का बीज भी बोता है। और कोई भी ज़िम्मेदार सरकार इसे चुपचाप नहीं देखती रहेगी।

पंजाब पिछले कई दशकों से नशों, गैंगस्टरों और भ्रष्टाचार की मार झेल रहा है, और जब सरकार राज्य को इन हालात से बाहर निकालने के लिए दृढ़ नीयत से लड़ रही हो, तो ऐसे बयान जो बिना किसी सबूत के उछाले जाते हैं, वे राज्य को नए रास्ते पर ले जाने वाले प्रयासों को पटरी से उतारने की कोशिश होते हैं।

यह विरोध प्रदर्शन एक चेतावनी भरा संदेश भी था कि आम आदमी पार्टी अब केवल वादों की राजनीति से नहीं, बल्कि जनता की शांति और सुख-चैन के लिए एक ज़िम्मेदार सरकार की भूमिका निभा रही है। इस प्रदर्शन की भारी उपस्थिति—हज़ारों कार्यकर्ताओं और नेताओं की भागीदारी ने यह साबित कर दिया कि यह मामला सिर्फ़ एक नेता की नाराज़गी नहीं, बल्कि राज्य की अखंडता और जन-विश्वास की रक्षा का मुद्दा है।

इससे पहले मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बाजवा के बयानों को साज़िश करार दिया था और इसे राज्य के लिए खतरनाक बताया था। सरकार के बयानों से यह स्पष्ट है कि सरकार प्रताप सिंह बाजवा को ढील नहीं देगी।

‘आप’ का कहना है कि असल में कांग्रेस और उसके सहयोगी आम आदमी पार्टी की तरक्की को सहन नहीं कर पा रहे हैं। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि राज्य की स्थिरता को ख़तरा केवल बाहरी ताक़तों से नहीं, बल्कि आंतरिक राजनीतिक दलों से भी है।

जब कोई राजनीतिक पार्टी अपनी सरकार की उपलब्धियों—जैसे नशे पर नियंत्रण, गैंगस्टर इलाकों में छापेमारी, और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की बात करती है, तो यह आवश्यक हो जाता है कि उन पर झूठे आरोप न लगाए जाएं। यह समय है जब पंजाब को चोट नहीं, इलाज चाहिए। विघ्न नहीं, स्थिरता चाहिए। और भयानक दावे नहीं, सच्चाई और जवाबदेही की ज़रूरत है।

“पंजाब ने काफ़ी दुःख झेले हैं”—यह केवल एक वाक्य नहीं, यह पंजाब की जनता के मन की आवाज़ है। यह आम आदमी पार्टी की नहीं, बल्कि सूबे की आत्मा की गूंज है। एक ऐसी गूंज जो आशा करती है कि मौजूदा राजनीति ईमानदारी, जवाबदेही और शांति की राह अपनाएगी—ना कि डर और गुमराही की।

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