चंडीगढ़, 29 जनवरी- हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी ने बुधवार को आदि बद्री, यमुनानगर में 31 कुंडीय हवन यज्ञ और मंत्रोच्चारण के बीच अंतरराष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव-2025 का शुभारंभ किया। यह महोत्सव 29 जनवरी से 2 फरवरी, 2025 तक चलेगा। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने विकास कार्यों की सौगात देते हुए 54 करोड़ 71 लाख रुपये की लागत की 29 परियोजनाओं का उद्घाटन एवं शिलान्यास भी किया। इनमें 26 करोड़ 71 लाख रुपये की लागत की 15 परियोजनाओं के उद्घाटन और लगभग 28 करोड़ रुपये की लागत की 14 परियोजनाओं के शिलान्यास शामिल हैं।
इस मौके पर मुख्यमंत्री ने माँ सरस्वती की चरण वंदना करते हुए कहा कि आज समय, स्थान और अवसर का अद्भुत संगम है। आज मौनी अमावस्या है। महाकुंभ का शाही स्नान है। ऋतुराज वसंत का आगमन भी हो रहा है। इसी मनमोहक वातावरण में मां सरस्वती नदी के उद्गम स्थल आदिबद्री में अंतर्राष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव का शुभारंभ हो रहा है। इस महोत्सव का उद्देश्य पूरे संसार का ध्यान हमारी महान सभ्यता की ओर आकर्षित करना है। इस महोत्सव के माध्यम से हम अपनी संस्कृति, सभ्यता और मूल्यों को भी अगली पीढ़ी तक पहुंचा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि आज ही मां सरस्वती के किनारे पर स्थित दूसरे तीर्थ स्थलों पर भी यह महोत्सव धूमधाम से शुरू हो रहा है। पेहवा तीर्थ सरस और सांस्कृतिक मेले का शुभारंभ हो रहा है। कैथल पोलड़ एवं पिसोल तीर्थ और जींद के हंस डहर तीर्थ में एक फरवरी को सरस्वती महोत्सव के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि नदियों को भारतीय संस्कृति में पूजनीय माना जाता रहा है। इन दिनों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हो रहा है। यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है। कुम्भ केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैचारिक समागम व आदान-प्रदान के मंच के रूप में भी महत्व रखता है।
उन्होंने कहा कि सरस्वती नदी के प्रवाह के वैज्ञानिक प्रमाण मिल चुके हैं। सरस्वती नदी का वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आया है। यह नदी आज की गंगा की तरह उस समय की विशाल नदियों में से एक थी। वैदिक संस्कृति सरस्वती नदी के किनारे पनपी थी। इस नदी के किनारे ऋषि-मुनियों ने अपने आश्रम बनाकर वैदिक साहित्य की रचना की, जिसका ज्ञान देने के लिए हमें पूरे विश्व में विश्व गुरु के रूप में जाना गया। उन्होंने कहा कि महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा नीचे आदिबद्री से निकलती थी। यह नदी हरियाणा, राजस्थान तथा गुजरात में लगभग 1600 किलोमीटर तक प्रवाहित होते हुए अंत में अरब सागर में मिलती थी। लेकिन आज सरस्वती नदी विलुप्त हो गई है।